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February 2018

eMagazine_Feb2018_DA

出版日期 / “综合” / 语言—English / 52页
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में दलित का अभिप्राय उन लोगों से है, जिन्हें जन्म, जाति या वर्णगत भेदभाव के कारण हजारों सालों से सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों से वंचित रहना पड़ा है। दलितों की भी हालत कोई खास अच्छी नहीं रही है, सवर्ण आज भी दलितों के साथ बैठकर खाने में या उसकी बिरादरी में शादी-ब्याह से कतराते हैं। यह विडंबना ही है, कि समस्त प्राणियों में एक ही तत्व के दर्शन करने वाला, वर्ण-व्यवस्था को गुण और कर्म के आधार पर निर्धारित करनेवाला समाज, इतना कट्टर कैसे हो गया कि निम्न वर्ण या जाति में जन्म लेन 更多